فَقَالَ لَهُ: مِنْ فَمِكَ أَدِينُكَ أَيُّهَا الْعَبْدُ الشِّرِّيرُ. عَرَفْتَ أَنِّي إِنْسَانٌ صَارِمٌ، آخُذُ مَا لَمْ أَضَعْ، وَأَحْصُدُ مَا لَمْ أَزْرَعْ،
“स्वामी ने उससे कहा, ‘अरे दुष्ट सेवक, मैं तेरे अपने ही शब्दों के आधार पर तेरा न्याय करूँगा। तू तो जानता ही है कि में जो रखता नहीं हूँ, उसे भी ले लेने वाला और जो बोता नहीं हूँ, उसे भी काटने वाला एक कठोर व्यक्ति हूँ?