फिर उसने उनसे पूछा, “यदि तुममें से किसी के पास अपना बेटा है या बैल है, वह कुँए में गिर जाता है तो क्या सब्त के दिन भी तुम उसे तत्काल बाहर नहीं निकालोगे?”
“जब तुम्हें कोई विवाह भोज पर बुलाये तो वहाँ किसी आदरपूर्ण स्थान पर मत बैठो। क्योंकि हो सकता है वहाँ कोई तुमसे अधिक बड़ा व्यक्ति उसके द्वारा बुलाया गया हो।
फिर तुम दोनों को बुलाने वाला तुम्हारे पास आकर तुमसे कहेगा, ‘अपना यह स्थान इस व्यक्ति को दे दो।’ और फिर लज्जा के साथ तुम्हें सबसे नीचा स्थान ग्रहण करना पड़ेगा।
“सो जब तुम्हे बुलाया जाता है तो जाकर सबसे नीचे का स्थान ग्रहण करो जिससे जब तुम्हें आमंत्रित करने वाला आएगा तो तुमसे कहेगा, ‘हे मित्र, उठ ऊपर बैठ।’ फिर उन सब के सामने, जो तेरे साथ वहाँ अतिथि होंगे, तेरा मान बढ़ेगा।
फिर जिसने उसे आमन्त्रित किया था, वह उससे बोला, “जब कभी तू कोई दिन या रात का भोज दे तो अपने मित्रों, भाई बंधों, संबधियों या धनी मानी पड़ोसियों को मत बुला क्योंकि बदले में वे तुझे बुलायेंगे और इस प्रकार तुझे उसका फल मिल जायेगा।
“सो जब वह सेवक लौटा तो उसने अपने स्वामी को ये बातें बता दीं। इस पर उस घर का स्वामी बहुत क्रोधित हुआ और अपने सेवक से कहा, ‘शीघ्र ही नगर के गली कूँचों में जा और दीन-हीनों, अपाहिजों, अंधों और लँगड़ों को यहाँ बुला ला।’
“यदि मेरे पास कोई भी आता है और अपने पिता, माता, पत्नी और बच्चों अपने भाइयों और बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन तक से मुझ से अधिक प्रेम रखता है, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता!
“यदि तुममें से कोई बुर्ज बनाना चाहे तो क्या वह पहले बैठ कर उसके मूल्य का, यह देखने के लिये कि उसे पूरा करने के लिये उसके पास काफ़ी कुछ है या नहीं, हिसाब-किताब नहीं लगायेगा?
“या कोई राजा ऐसा होगा जो किसी दूसरे राजा के विरोध में युद्ध छेड़ने जाये और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि अपने दस हज़ार सैनिकों के साथ क्या वह बीस हज़ार सैनिकों वाले अपने विरोधी का सामना कर भी सकेगा या नहीं।