taedet animam meam vitae meae dimittam adversum me eloquium meum loquar in amaritudine animae meae
“किन्तु हाय, अब मैं वैसा नहीं कर सकता। मुझ को स्वयं अपने जीवन से घृणा हैं अत:
मैं मुक्त भाव से अपना दुखड़ा रोऊँगा। मेरे मन में कड़वाहट भरी है अत: मैं अबबोलूँगा।
numquid bonum tibi videtur si calumnieris et opprimas me opus manuum tuarum et consilium impiorum adiuves
हे परमेश्वर, क्या तू मुझे चोट पहुँचा कर प्रसन्न होता है?
ऐसा लगता है जैसे तुझे अपनी सृष्टि की चिंता नहीं है और शायद तू दुष्टों के कुचक्रों का पक्ष लेता है।
licet haec celes in corde tuo tamen scio quia universorum memineris
किन्तु यह वह है जिसे तूने अपने मन में छिपाये रखा
और मैं जानता हूँ, यह वह है जिसकी तूने अपने मन में गुप्त रूप से योजना बनाई।
हाँ, यह मैं जानता हूँ, यह वह है जो तेरे मन में था।
et si impius fuero vae mihi est et si iustus non levabo caput saturatus adflictione et miseria
जब मैं पाप करता हूँ तो
मैं अपराधी होता हूँ और यह मेरे लिये बहुत ही बुरा होगा।
किन्तु मैं यदि निरपराध भी हूँ
तो भी अपना सिर नहीं उठा पाता
क्योंकि मैं लज्जा और पीड़ा से भरा हुआ हूँ।
et propter superbiam quasi leaenam capies me reversusque mirabiliter me crucias
यदि मुझको कोई सफलता मिल जाये और मैं अभिमानी हो जाऊँ,
तो तू मेरा पीछा वैसे करेगा जैसे सिंह के पीछे कोई शिकारी पड़ता है
और फिर तू मेरे विरुद्ध अपनी शक्ति दिखायेगा।
terram miseriae et tenebrarum ubi umbra mortis et nullus ordo et sempiternus horror inhabitans
जो थोड़ा समय मेरा बचा है उसे मुझको जी लेने दो, इससे पहले कि मैं वहाँ चला जाऊँ जिस स्थान को कोई नहीं देख पाता अर्थात् अधंकार, विप्लव और गड़बड़ी का स्थान।
उस स्थान में यहाँ तक कि प्रकाश भी अंधकारपूर्ण होता है।”