جَمِيعُ عِظَامِي تَقُولُ: «يَا رَبُّ، مَنْ مِثْلُكَ الْمُنْقِذُ الْمِسْكِينَ مِمَّنْ هُوَ أَقْوَى مِنْهُ، وَالْفَقِيرَ وَالْبَائِسَ مِنْ سَالِبِهِ؟ ».
मैं अपने सम्पूर्ण मन से कहूँगा,
हे “यहोवा, तेरे समान कोई नहीं है।
तू सबलों से दुर्बलों को बचाता है।
जो जन शक्तिशाली होते हैं, उनसे तू वस्तुओं को छीन लेता है और दीन और असहाय लोगों को देता है।”