وَقَالَ أَيْضًا لِلَّذِي دَعَاهُ:«إِذَا صَنَعْتَ غَدَاءً أَوْ عَشَاءً فَلاَ تَدْعُ أَصْدِقَاءَكَ وَلاَ إِخْوَتَكَ وَلاَ أَقْرِبَاءَكَ وَلاَ الْجِيرَانَ الأَغْنِيَاءَ، لِئَلاَّ يَدْعُوكَ هُمْ أَيْضًا، فَتَكُونَ لَكَ مُكَافَاةٌ.
फिर जिसने उसे आमन्त्रित किया था, वह उससे बोला, “जब कभी तू कोई दिन या रात का भोज दे तो अपने मित्रों, भाई बंधों, संबधियों या धनी मानी पड़ोसियों को मत बुला क्योंकि बदले में वे तुझे बुलायेंगे और इस प्रकार तुझे उसका फल मिल जायेगा।