وَمَحَبَّتُهُ مِنْ كُلِّ الْقَلْبِ، وَمِنْ كُلِّ الْفَهْمِ، وَمِنْ كُلِّ النَّفْسِ، وَمِنْ كُلِّ الْقُدْرَةِ، وَمَحَبَّةُ الْقَرِيبِ كَالنَّفْسِ، هِيَ أَفْضَلُ مِنْ جَمِيعِ الْمُحْرَقَاتِ وَالذَّبَائِحِ».
अपने समूचे मन से, सारी समझ-बूझ से, सारी शक्ति से परमेश्वर को प्रेम करना और अपने समान अपने पड़ोसी से प्यार रखना, सारी बलियों और समर्पित भेटों से जिनका विधान किया गया है, अधिक महत्त्वपूर्ण है।”