शब्द वस्तुओं का पूरा—पूरा वर्णन नहीं कर सकते। लेकिन लोग अपने विचार को व्यक्त नहीं कर पाते, सदा बोलते ही रहते हैं। शब्द हमारे कानों में बार—बार पड़ते हैं किन्तु उनसे हमारे कान कभी भी भरते नहीं हैं। हमारी आँखें भी, जो कुछ वे देखती हैं, उससे कभी अघाती नहीं हैं।
वे बातें जो बहुत पहले घट चुकी हैं, उन्हें लोग याद नहीं करते और आगे भी लोग उन बातों को याद नहीं करेंगे जो अब घट रही हैं और उसके बाद भी अन्य लोग उन बातों को याद नहीं रखेंगे जिन्हें उनके पहले के लोगों ने किया था।
मैंने निश्चय किया कि मैं इस जीवन में जो कुछ होता है उसे जानने के लिये अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए उसका अध्ययन करूँ। मैंने जाना कि परमेश्वर ने हमें करने के लिये जो यह काम दिया है वह बहुत कठिन है।
तुम उन बातों को बदल नहीं सकते। यदि कोई बात टेढ़ी है तो तुम उसे सीधी नहीं कर सकते और यदि किसी वस्तु का अभाव है तो तुम यह नहीं कह सकते कि वह वस्तु वहाँ है।
मैंने अपने आप से कहा, “मैं बहुत बुद्धिमान हूँ। मुझसे पहले यरूशलेम में जिन राजाओं ने राज्य किया है, मैं उन सब से अधिक बुद्धिमान हूँ। मैं जानता हूँ कि वास्तव में बुद्धि और ज्ञान क्या है!”
मैंने यह जानने का निश्चय किया कि मूर्खतापूर्ण चिन्तन से विवेक और ज्ञान किस प्रकार श्रेष्ठ हैं। किन्तु मुझे ज्ञात हुआ कि विवेकी बनने का प्रयास वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ने का प्रयत्न।