वह जीवन जिसको हम लोग जीते हैं, वह झूठी छाया भर होता है।
जीवन की सारी भाग दौड़ निरर्थक होती है। हम तो बस व्यर्थ ही चिन्ताएँ पालते हैं।
धन दौलत, वस्तुएँ हम जोड़ते रहते हैं, किन्तु नहीं जानते उन्हें कौन भोगेगा।
إِنَّمَا كَخَيَال يَتَمَشَّى الإِنْسَانُ. إِنَّمَا بَاطِلاً يَضِجُّونَ. يَذْخَرُ ذَخَائِرَ وَلاَ يَدْرِي مَنْ يَضُمُّهَا.