هِيَ كَاللَّعِينِ فِي مَقْثَأَةٍ فَلاَ تَتَكَلَّمُ! تُحْمَلُ حَمْلاً لأَنَّهَا لاَ تَمْشِي! لاَ تَخَافُوهَا لأَنَّهَا لاَ تَضُرُّ، وَلاَ فِيهَا أَنْ تَصْنَعَ خَيْرًا».
अन्य देशों की देव मूर्तियों,
ककड़ी के खेत में खड़े फूस के पुतले के समान हैं।
वे न बोल सकती हैं, और न चल सकती हैं।
उन्हें उठा कर ले जाना पड़ता है क्योंकि वे चल नहीं सकते।
उनसे मत डरो। वे न तो तुमको चोट पहुँचा सकती हैं
और न ही कोई लाभ!”