أَيْضًا كُلُّ إِنْسَانٍ أَعْطَاهُ اللهُ غِنًى وَمَالاً وَسَلَّطَهُ عَلَيْهِ حَتَّى يَأْكُلَ مِنْهُ، وَيَأْخُذَ نَصِيبَهُ، وَيَفْرَحَ بِتَعَبِهِ، فَهذَا هُوَ عَطِيَّةُ اللهِ.
यदि परमेश्वर किसी को धन, सम्पत्ति, और उन वस्तुओं का आनन्द लेने की शक्ति देता है तो उस व्यक्ति को उनका आनन्द लेना चाहिये। उस व्यक्ति को जो कुछ उसके पास है उसे स्वीकार करना चाहिये और अपने काम के जो परमेश्वर की ओर से एक उपहार है उसका रस लेना चाहिये।