احْتَرِزْ مِنْ أَنْ يَكُونَ مَعَ قَلْبِكَ كَلاَمٌ لَئِيمٌ قَائِلاً: قَدْ قَرُبَتِ السَّنَةُ السَّابِعَةُ، سَنَةُ الإِبْرَاءِ، وَتَسُوءُ عَيْنُكَ بِأَخِيكَ الْفَقِيرِ وَلاَ تُعْطِيهِ، فَيَصْرُخَ عَلَيْكَ إِلَى الرَّبِّ فَتَكُونُ عَلَيْكَ خَطِيَّةٌ.
“किसी को सहायता देने से इसलिए इन्कार न करो, क्योंकि ऋण को खत्म करने का सातवाँ वर्ष समीप है। इस प्रकार का बुरा विचार अपने मन में न अने दो। तुम्हें उस व्यक्ति के प्रति बुरे विचार नहीं रखने चाहिए जिसे सहायता की आवश्यकता है। तुम्हें उसकी सहायता करने से इन्कार नहीं करना चाहिए। यदि तुम उस गरीब व्यक्ति को कुछ नहीं देते तो वह यहोवा से तुम्हारे विरुद्ध शिकायत करेगा और यहोवा तुम्हें पाप करने का उत्तरदायी पाएगा।