“‘सिंह माता को आशा थी कि सिंह—शावक प्रमुख बनेगा।
किन्तु अब उसकी सारी आशायें लुप्त हो गई।
इसलिये अपने शावकों में से उसने एक अन्य को लिया।
उसे उसने सिंह होने का प्रशिक्षण दिया।
उन्होंने उस पर नकेल लगाई और उसे बन्द कर दिया।
उन्होंने उसे अपने जाल में बन्द रखा।
इस प्रकार उसे वे बाबुल के राजा के पास ले गए।
अब, तुम इस्राएल के पर्वतों पर उसकी गर्जना सुन नहीं सकते।
तब उसने एक बड़ी शाखा उत्पन्न की,
वह शाखा टहलने की छड़ी जैसी थी।
वह शाखा राजा के राजदण्ड जैसी थी।
बेल ऊँची, और ऊँची होती गई।
इसकी अनेक शाखायें थीं और वह बादलों को छूने लगी।
किन्तु बेल को जड़ से उखाड़ दिया गया,
और उसे भूमि पर फेंक दिया गया।
गर्म पुरवाई हवा चली और उसके फलों को सुखा दिया
शक्तिशाली शाखायें टूट गईं, और उन्हें आग में फेंक दिया गया।
विशाल शाखा से आग फैली।
आग ने उसकी सारी टहनियों और फलों को जला दिया।
अत: कोई सहारे की शक्तिशाली छड़ी नहीं रही।
कोई राजा का राजदण्ड न रहा।’
यह मृत्यु के बारे में करुण—गीत था और यह मृत्यु के बारे में करुणगीत के रूप में गाया गया था।”