मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, मैंने अपने उपवन में
अपनी सुगध सामग्री के साथ प्रवेश किया। मैंने अपना रसगंध एकत्र किया है।
मैं अपना मधु छत्ता समेत खा चुका।
मैं अपना दाखमधु और अपना दूध पी चुका।
हे मित्रों, खाओ, हाँ प्रेमियों, पियो!
प्रेम के दाखमधु से मस्त हो जाओ!
मैं सोती हूँ
किन्तु मेरा हृदय जागता है।
मैं अपने हृदय—धन को द्वार पर दस्तक देते हुए सुनती हूँ।
“मेरे लिये द्वार खोलो मेरी संगिनी, ओ मेरी प्रिये! मेरी कबूतरी, ओ मेरी निर्मल!
मेरे सिर पर ओस पड़ी है
मेरे केश रात की नमी से भीगें हैं।”
अपने प्रियतम के लिये मैंने द्वार खोल दिया,
किन्तु मेरा प्रियतम तब तक जा चुका था!
जब वह चला गया
तो जैसे मेरा प्राण निकल गया।
मैं उसे ढूँढती फिरी
किन्तु मैंने उसे नहीं पाया;
मैं उसे पुकारती फिरी
किन्तु उसने मुझे उत्तर नहीं दिया!
क्या तेरा प्रिय, औरों के प्रियों से उत्तम है स्त्रियों में तू सुन्दरतम स्त्री है।
क्या तेरा प्रिय, औरों से उत्तम है
क्या इसलिये तू हम से ऐसा वचन चाहती है