मीका ने अपनी माँ से कहा, “क्या तुम्हें चाँदी के ग्यारह सौ सिक्के याद हैं जो तुमसे चुरा लिये गए थे। मैंने तुम्हें उसके बारे में शाप देते सुना। वह चाँदी मेरे पास है। मैंने उसे लिया है।” उसकी माँ ने कहा, “मेरे पुत्र, तुम्हें यहोवा आशीर्वाद दे।”
मीका ने अपनी माँ को ग्यारह सौ सिक्के वापस दिये। तब उसने कहा, “मैं ये सिक्के यहोवा को एक विशेष भेंट के रूप में दूँगी। मैं यह चाँदी अपने पुत्र को दूँगी और वह एक मूर्ती बनाएगा और उसे चाँदी से ढक देगा। इसलिए पुत्र, अब यह चाँदी मैं तुम्हें लौटाती हूँ।”
लेकिन मीका ने वह चाँदी अपनी माँ को लौटा दी। अत: उसने दो सौ शेकेल चाँदी लिये और एक सुनार को दे दिया। सुनार ने चाँदी का उपयोग चाँदी से ढकी एक मूर्ति बनाने में किया। मूर्ति मीका के घर में रखी गई।
उस युवक ने यहूदा में बेतलेहेम को छोड़ दिया। वह रहने के लिये दूसरी जगह ढूँढ रहा था। जब वह यात्रा कर रहा था, वह मीका के घर आया। मीका का घर एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में था।
मीका ने उससे पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?” युवक ने उत्तर दिया, “मैं उस बेतेलेहम नगर का लेवीवंशी हूँ जो यहूदा प्रदेश में है। मैं रहने के लिये स्थान ढूँढ रहा हूँ।”
तब मीका ने उससे कहा, “मेरे साथ रहो। मेरे पिता और मेरे याजक बनो। मैं हर वर्ष तुम्हें दस चाँदी के सिक्के दूँगा। मैं तुम्हें वस्त्र और भोजन भी दूँगा।” लेवीवंशी ने वह किया जो मीका ने कहा।