Zechariah 8

यह सन्देश सर्वशक्तिमान यहावा का है
et factum est verbum Domini exercituum dicens
सर्वशक्तिमान यहावा कहता है, “मैं सच ही, सिय्योन से प्रेम करता हूँ। मैं उससे इतना प्रेम करता हूँ कि जब वह मेरी विशवासपात्र न रही, तब मैं उस पर क्रोधित हो गया।”
haec dicit Dominus exercituum zelatus sum Sion zelo magno et indignatione magna zelatus sum eam
यहोवा कहता है, “मैं सिय्योन के पास वापस आ गया हूँ। मैं यरूशलेम में रहने लगा हूँ। यरूशलेम विशवास नगर कहलाएगा। मेरा पर्वत, पवित्र पर्वत कहलाएगा।”
haec dicit Dominus exercituum reversus sum ad Sion et habitabo in medio Hierusalem et vocabitur Hierusalem civitas veritatis et mons Domini exercituum mons sanctificatus
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “यरूशलेम में फिर बुढे स्त्री—पुरूष समाजिक स्थलों में दिखाई पङेंगे। लोग इतनी लम्बी आयु तक जीवीत रहेंगेकि उन्हें सहरे की छङी की आवश्यकता होगी
haec dicit Dominus exercituum adhuc habitabunt senes et anus in plateis Hierusalem et viri baculus in manu eius prae multitudine dierum
और नगर सङकों पर खेलने वाले बच्चों से भरा होगा।
et plateae civitatis conplebuntur infantibus et puellis ludentibus in plateis eius
बचे हुये लोग इसे आश्चर्यजनक मानेंगे और मैं भी इसे आश्चर्यजनक मानूँगा!”
haec dicit Dominus exercituum si difficile videbitur in oculis reliquiarum populi huius in diebus illis numquid in oculis meis difficile erit dicit Dominus exercituum
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “देखो, मैं पूर्व और पश्चिम के देशो से अपने लोगों को बचा ले चल रहा हूँ।
haec dicit Dominus exercituum ecce ego salvabo populum meum de terra orientis et de terra occasus solis
मैं उन्हें यहाँ वापस लाऊँगा और वे यरूशलेम में रहेंगे। वे मेरे लोग होंगे और मैं उनका अच्छा और विश्वसनीय परमेश्वर होऊँगा!”
et adducam eos et habitabunt in medio Hierusalem et erunt mihi in populum et ego ero eis in Deum in veritate et iustitia
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “शक्तिशाली बनो! लोगों, तुम आज वही सन्देश सुन रहे हो, जिसे नबियों ने तब दिया था जब सर्वशक्तिमान यहोवा ने अपने मंदिर को फिर से बनाने के लिये नींव डाली।
haec dicit Dominus exercituum confortentur manus vestrae qui auditis in diebus his sermones istos per os prophetarum in die qua fundata est domus Domini exercituum ut templum aedificaretur
उस समय के पहले लोगों के पास श्रमिकों को मजदुरी पर रखने या जानवर को किराये पर रखने के लिये धन नहीं था और मनुष्यों का आवागमन सुरक्षित नही था। सारी आपत्तियों से किसी प्रकार की मुक्ति नही थी। मैंने हर एक को पङोसी के विरूद्ध कर दिया था।
siquidem ante dies illos merces hominum non erat nec merces iumentorum erat neque introeunti et exeunti erat pax prae tribulatione et dimisi omnes homines unumquemque contra proximum suum
किन्तु अब वैसा नही है। बचे हुओं के लिए अब वैसा नही होगा।” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह बाते कहीं।
nunc autem non iuxta dies priores ego faciam reliquiis populi huius dicit Dominus exercituum
“ये लोग शान्ति के साथ फसल लगाऐगे। उनके अंगुर के बाग अंगूर देंगे। भुमि अच्छी फसल देगी तथा आकाश वर्षा देगा। मैं यह सभी चीजें अपने इन लोगों को दूँगा।
sed semen pacis erit vinea dabit fructum suum et terra dabit germen suum et caeli dabunt rorem suum et possidere faciam reliquias populi huius universa haec
लाग अपने शापों में यरूशलेम और यहुदा का नाम लेने लगे हैं। किन्तु मैं इस्राइल और यहुदा को बचाऊँगा और उनके नाम वरदान के रूप मैं प्रमाणित होने लगेंगे। अत: डरो नही।शक्तिशाली बनो!”
et erit sicut eratis maledictio in gentibus domus Iuda et domus Israhel sic salvabo vos et eritis benedictio nolite timere confortentur manus vestrae
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे क्रोधित किया था। अत: मैंने उन्हें नष्ट करने का निर्णय लिया। मैंने अपने इरादे को न बदलने का निश्यच किया।” सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा।
quia haec dicit Dominus exercituum sicut cogitavi ut adfligerem vos cum ad iracundiam provocassent patres vestri me dicit Dominus
“किन्तु अब मैने अपना इरादा बदल दिया है और उसी तरह मैंने यरूशलेम और यहूदा के लोगों के प्रति अच्छा बने रहने का निशच्य किया है। अत: डरो नहीं!
et non sum misertus sic conversus cogitavi in diebus istis ut benefaciam Hierusalem et domui Iuda nolite timere
किन्तु तुम्हें यह करना चाहिए: अपने पङोसीयों से सत्य बोलो। जब तुम अपने नगरों में निर्णय लो, तो वह करो जो सत्य और शान्ति लाने वाला हो।
haec sunt ergo verba quae facietis loquimini veritatem unusquisque cum proximo suo veritatem et iudicium pacis iudicate in portis vestris
अपने पङोसियों को चाट पहुँचाने के लिये गुप्त योजनायें न बनाओ! झुठी प्रतिज्ञायें न करो! ऐसा करने में तुम्हें आन्नद नही लेना चाहिये। क्यों क्योंकि मैं उन बातों से घृणा करता हूँ।” यहोवा ने यह सब कहा।
et unusquisque malum contra amicum suum ne cogitetis in cordibus vestris et iuramentum mendax ne diligatis omnia enim haec sunt quae odi dicit Dominus
मैंने सर्वशक्तिमान यहोवा का यह सन्देश पाया।
et factum est verbum Domini exercituum ad me dicens
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “शोक मनाने और उपवास के विशेष दिन चौथे महीने, पाँचवें महीने, सातवें महीने और दसवें महीने में हैं। वे शोक के दिन प्रसन्नता के दिन में बदल जाने चाहिये। वे अच्छे और प्रसन्ननता के दिन में बदल जाने चाहिये। वो अच्छे और प्रसन्ननता के पवित्र दिन होंगे और तम्हें सत्य और शान्ति से प्रेम करना चाहिये!”
haec dicit Dominus exercituum ieiunium quarti et ieiunium quinti et ieiunium septimi et ieiunium decimi erit domui Iuda in gaudium et in laetitiam et in sollemnitates praeclaras veritatem tantum et pacem diligite
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “भविष्य में, अनेक नगरों से लोग यरूशलेम आएंगे।
haec dicit Dominus exercituum usquequo veniant populi et habitent in civitatibus multis
एक नगर के लोग दुसरे नगर के मोलने वाले लोगों से कहेंगे, ‘हम सर्वशक्तिमान यहोवा की उपासना करने जा रहे हैं,’ ‘हमारे साथ आओ!’”
et vadant habitatores unus ad alterum dicentes eamus et deprecemur faciem Domini et quaeramus Dominum exercituum vadam etiam ego
अनेक लोग और अनेक शक्तिशाली राष्ट्र सर्वशक्तिमान यहोवा की खाज में यरूशलेम आएंगे। वे वहाँ उपासना करने आएंगे।
et venient populi multi et gentes robustae ad quaerendum Dominum exercituum in Hierusalem et deprecandam faciem Domini
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “उस समय विभन्न राष्ट्रों से विभन्न भाषाओ को बदलने वाले दस व्यक्ति एक यहुदी के चादर का पल्ला पकङेंगे और कहेंगे हमने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है। क्या हम उसकी उपासना करने तम्हारे साथ आ सकते हैं।”
haec dicit Dominus exercituum in diebus illis in quibus adprehendent decem homines ex omnibus linguis gentium et adprehendent fimbriam viri iudaei dicentes ibimus vobiscum audivimus enim quoniam Deus vobiscum est