काश, तुम मेरे शिशु भाई होते, मेरी माता की छाती का दूध पीते हुए!
यदि मैं तुझसे वहीं बाहर मिल जाती
तो तुम्हारा चुम्बन मैं ले लेती,
और कोई व्यक्ति मेरी निन्दा नहीं कर पाता!
quis mihi det te fratrem meum sugentem ubera matris meae ut inveniam te foris et deosculer et iam me nemo despiciat
मैं तुम्हारी अगुवाई करती और तुम्हें मैं अपनी माँ के भवन में ले आती,
उस माता के कक्ष में जिसने मुझे शिक्षा दी।
मैं तुम्हें अपने अनार की सुगंधित दाखमधु देती,
उसका रस तुम्हें पीने को देती।
adprehendam te et ducam in domum matris meae ibi me docebis et dabo tibi poculum ex vino condito et mustum malorum granatorum meorum
कौन है यह स्त्री
अपने प्रियतम पर झुकी हुई जो मरुभूमि से आ रही है
मैंने तुम्हें सेब के पेड़ तले जगाया था,
जहाँ तेरी माता ने तुझे गर्भ में धरा
और यही वह स्थान था जहाँ तेरा जन्म हुआ।
quae est ista quae ascendit de deserto deliciis affluens et nixa super dilectum suum sub arbore malo suscitavi te ibi corrupta est mater tua ibi violata est genetrix tua
अपने हृदय पर तू मुद्रा सा धर।
जैसी मुद्रा तेरी बाँह पर है।
क्योंकि प्रेम भी उतना ही सबल है जितनी मृत्यु सबल है।
भावना इतनी तीव्र है जितनी कब्र होती है।
इसकी धदक
धधकती हुई लपटों सी होती है!
pone me ut signaculum super cor tuum ut signaculum super brachium tuum quia fortis est ut mors dilectio dura sicut inferus aemulatio lampades eius lampades ignis atque flammarum
प्रेम की आग को जल नहीं बुझा सकता।
प्रेम को बाढ़ बहा नहीं सकती।
यदि कोई व्यक्ति प्रेम को घर का सब दे डाले
तो भी उसकी कोई नहीं निन्दा करेगा!
aquae multae non poterunt extinguere caritatem nec flumina obruent illam si dederit homo omnem substantiam domus suae pro dilectione quasi nihil despicient eum
किन्तु सुलैसान, मेरा अपना अंगूर का बाग मेरे लिये है।
हे सुलैमान, मेरे चाँदी के एक हजार शेकेल सब तू ही रख ले,
और ये दो सौ शेकेल उन लोगों के लिये हैं
जो खेतों में फलों की रखवाली करते हैं!
vinea mea coram me est mille tui Pacifice et ducenti his qui custodiunt fructus eius