Revelation of John 14

फिर मैंने देखा कि मेरे सामने सिय्योन पर्वत पर मेमना खड़ा है। उसके साथ ही एक लाख चवालीस हज़ार वे लोग भी खड़े थे जिनके माथों पर उसका और उसके पिता का नाम अंकित था।
et vidi et ecce agnus stabat supra montem Sion et cum illo centum quadraginta quattuor milia habentes nomen eius et nomen Patris eius scriptum in frontibus suis
फिर मैंने एक आकाशवाणी सुनी, उसका महा नाद एक विशाल जल प्रपात के समान था या घनघोर मेघ गर्जन के जैसा था। जो महानाद मैंने सुना था, वह अनेक वीणा वादकों द्वारा एक साथ बजायी गई वीणाओं से उत्पन्न संगीत के समान था।
et audivi vocem de caelo tamquam vocem aquarum multarum et tamquam vocem tonitrui magni et vocem quam audivi sicut citharoedorum citharizantium in citharis suis
वे लोग सिंहासन, चारों प्राणियों तथा प्राचीनों के सामने एक नया गीत गा रहे थे। जिन एक लाख चवालीस हज़ार लोगों को धरती पर फिरौती देकर बन्धन से छुड़ा लिया गया था उन्हें छोड़ अन्य कोई भी व्यक्ति उस गीत को नहीं सीख सकता था।
et cantabant quasi canticum novum ante sedem et ante quattuor animalia et seniores et nemo poterat discere canticum nisi illa centum quadraginta quattuor milia qui empti sunt de terra
वे ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने किसी स्त्री के संसर्ग से अपने आपको दूषित नहीं किया था। क्योंकि वे कुंवारे थे जहाँ कहीं मेमना जाता, वे उसका अनुसरण करते। सारी मानव जाति से उन्हें फिरौती देकर बन्धन से छुड़ा लिया गया था। वे परमेश्वर और मेमने के लिए फसल के पहले फल थे।
hii sunt qui cum mulieribus non sunt coinquinati virgines enim sunt hii qui sequuntur agnum quocumque abierit hii empti sunt ex hominibus primitiae Deo et agno
उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला था, वे निर्दोष थे।
et in ore ipsorum non est inventum mendacium sine macula sunt
फिर मैंने आकाश में ऊँची उड़ान भरते एक और स्वर्गदूत को देखा। उसके पास धरती के निवासियों, प्रत्येक देश, जाति, भाषा और कुल के लोगों के लिए सुसमाचार का एक अनन्त सन्देश था।
et vidi alterum angelum volantem per medium caelum habentem evangelium aeternum ut evangelizaret sedentibus super terram et super omnem gentem et tribum et linguam et populum
ऊँचे स्वर में वह बोला, “परमेश्वर से डरो और उसकी स्तुति करो। क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ गया है। उसकी उपासना करो, जिसने आकाश, पृथ्वी, सागर और जल-स्रोतों की रचना की है।”
dicens magna voce timete Deum et date illi honorem quia venit hora iudicii eius et adorate eum qui fecit caelum et terram et mare et fontes aquarum
इसके पश्चात् उसके पीछे एक और स्वर्गदूत आया और बोला, “उसका पतन हो चुका है, महान नगरी बाबुल का पतन हो चुका है। उसने सभी जातियों को अपने व्यभिचार से उत्पन्न क्रोध की वासनामय मदिरा पिलायी थी।”
et alius angelus secutus est dicens cecidit cecidit Babylon illa magna quae a vino irae fornicationis suae potionavit omnes gentes
उन दोनों के पश्चात् फिर एक और स्वर्गदूत आया और ऊँचे स्वर में बोला, “यदि कोई उस पशु और उसकी मूर्ति की उपासना करता है और अपने हाथ या माथे पर उसका छाप धारण करता है,
et alius angelus tertius secutus est illos dicens voce magna si quis adoraverit bestiam et imaginem eius et acceperit caracterem in fronte sua aut in manu sua
तो वह परमेश्वर के प्रकोप की मदिरा पीएगा। ऐसी अमिश्रित तीखी मदिरा जो परमेश्वरके प्रकोप के कटोरे में तैयार की गयी है। उस व्यक्ति को पवित्र स्वर्गदूतों और मेमने से सामने धधकती हुई गंधक में यातनाएँ दी जायेंगी।
et hic bibet de vino irae Dei qui mixtus est mero in calice irae ipsius et cruciabitur igne et sulphure in conspectu angelorum sanctorum et ante conspectum agni
युग-युगान्तर तक उनकी यातनाओं से धूआँ उठता रहेगा। और जिस किसी पर भी पशु के नाम की छाप अंकित होगी और जो उसकी और उसकी मूर्ति की उपासना करता होगा, उन्हें रात-दिन कभी चैन नहीं मिलेगा।”
et fumus tormentorum eorum in saecula saeculorum ascendit nec habent requiem die ac nocte qui adoraverunt bestiam et imaginem eius et si quis acceperit caracterem nominis eius
इसी स्थान पर परमेश्वर के उन संत जनों की धैर्यपूर्ण सहनशीलता की अपेक्षा है जो परमेश्वर की आज्ञाओं और यीशु में अपने विश्वास का पालन करती है।
hic patientia sanctorum est qui custodiunt mandata Dei et fidem Iesu
फिर एक आकाशवाणी को मैंने यह कहते सुना, “इसे लिख अब से आगे वे ही लोग धन्य होगें जो प्रभु में स्थित हो कर मरे हैं।” आत्मा कहती है, “हाँ, यही ठीक है। उन्हें अपने परिश्रम से अब विश्राम मिलेगा क्योंकि उनके कर्म, उनके साथ हैं।”
et audivi vocem de caelo dicentem scribe beati mortui qui in Domino moriuntur amodo iam dicit Spiritus ut requiescant a laboribus suis opera enim illorum sequuntur illos
फिर मैंने देखा कि मेरे सामने वहाँ एक सफेद बादल था। और उस बादल पर एक व्यक्ति बैठा था जो मनुष्य के पुत्र जैसा दिख रहा था। उसने सिर पर एक स्वर्णमुकुट धारण किया हुआ था और उसके हाथ में एक तेज हँसिया था।
et vidi et ecce nubem candidam et supra nubem sedentem similem Filio hominis habentem in capite suo coronam auream et in manu sua falcem acutam
तभी मन्दिर में से एक और स्वर्गदूत बाहर निकला। उसने जो बादल पर बैठा था, उससे ऊँचे स्वर में कहा, “हँसिया चला और फसल इकट्ठी कर क्योंकि फसल काटने का समय आ पहुँचा है। धरती की फसल पक चुकी है।”
et alter angelus exivit de templo clamans voce magna ad sedentem super nubem mitte falcem tuam et mete quia venit hora ut metatur quoniam aruit messis terrae
सो जो बादल पर बैठा था, उसने धरती पर अपना हँसिया चलाया तथा धरती की फसल काट ली गयी।
et misit qui sedebat supra nubem falcem suam in terram et messa est terra
फिर आकाश में स्थित मन्दिर में से एक और स्वर्गदूत बाहर निकला। उसके पास भी एक तेज हँसिया था।
et alius angelus exivit de templo quod est in caelo habens et ipse falcem acutam
तभी वेदी से एक और स्वर्गदूत आया। अग्नि पर उसका अधिकार था। उस स्वर्गदूत से ऊँचे स्वर में कहा, “अपने तेज हँसिये का प्रयोग कर और धरती की बेल से अंगूर के गुच्छे उतार ले क्योंकि इसके अंगूर पक चुके हैं।”
et alius angelus de altari qui habet potestatem supra ignem et clamavit voce magna qui habebat falcem acutam dicens mitte falcem tuam acutam et vindemia botros vineae terrae quoniam maturae sunt uvae eius
सो उस स्वर्गदूत ने धरती पर अपना हँसिया चलाया और धरती के अंगूर उतार लिए और उन्हें परमेश्वर के भयंकर कोप की कुण्ड में डाल दिया।
et misit angelus falcem suam in terram et vindemiavit vineam terrae et misit in lacum irae Dei magnum
अंगूर नगर के बाहर की धानी में रौंद कर निचोड़ लिए गए। धानी में से लहू बह निकला। लहू घोड़े की लगाम जितना ऊपर चढ़ आया और कोई तीन सौ किलो मीटर की दूरी तक फैल गया।
et calcatus est lacus extra civitatem et exivit sanguis de lacu usque ad frenos equorum per stadia mille sescenta