أَوْجَبَ الْيَهُودُ وَقَبِلُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ وَعَلَى نَسْلِهِمْ وَعَلَى جَمِيعِ الَّذِينَ يَلْتَصِقُونَ بِهِمْ حَتَّى لاَ يَزُولَ، أَنْ يُعَيِّدُوا هذَيْنِ الْيَوْمَيْنِ حَسَبَ كِتَابَتِهِمَا وَحَسَبَ أَوْقَاتِهِمَا كُلَّ سَنَةٍ،
इसलिये ये दिन “पूरीम” कहलाये। “पूरीम” नाम “पूर” शब्द से बना है (जिसका अर्थ है लाटरी) और इसलिए यहूदियों ने हर वर्ष इन दो दिनों को उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत करने का निश्चय किया। उन्होंने यह इसलिए किया ताकि अपने साथ होते हुए जो बातें उन्होंने देखी थीं, उन्हें याद रखने में उनको मदद मिले। यहूदियों और उन दूसरे सभी लोगों को, जो यहूदियों में आ मिले थे, हर साल इन दो दिनों को ठीक उसी रीति और उसी समय मनाना था जिसका निर्देश मोर्दकै ने अपने आदेशपत्र में किया था।