“यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर को विशेष वचन देता है या यदि वह व्यक्ति यहोवा को कुछ विशेष अर्पित करने का वचन देता है तो उसे वैसा ही करने दो। किन्तु उस व्यक्ति को ठीक वैसा ही करना चाहिए जैसा उसने वचन दिया है।
और उसका पिता इस वचन के विषय में सुनता है और उसे स्वीकार करत लेता है तो उस युवती को उस वचन को अवश्य ही पूरा कर देना चाहिए जिसे करने का उसने वचन दिया है।
किन्तु यदि उसका पिता उसके दिये गये वचन के बारे में सुन कर उसे स्वीकार नहीं करता तो उस युवती को वह वचन पूरा नहीं करना है। उसके पिता ने उसे रोका अतः यहोवा उसे क्षमा करेगा।
“सम्भव है कोई स्त्री अपने विवाह से पहले यहोवा को कोई वचन देती है अथवा बात ही बात में बिना सोचे विचारे कोई वचन ले लेती है और बाद में उसका विवाह हो जाता है
किन्तु यदि पति दिये गए वचन के बारे में सुनता है और उसे स्वीकार नहीं करता तो स्त्री को अपने दिये गए वचन को पूरा नहीं करना पड़ेगा। उसके पति ने उसका वचन तोड़ दिया और उसने उसे उसकी कही बात को पूरा नहीं करने दिया, अतः यहोवा उसे क्षमा करेगा।
किन्तु यदि उसका पति उसके दिये गए वचन को सुनता है और उसे वचन पूरा करने से इन्कार करता है, तो उसे अपने दिये वचन के अनुसार वह कार्य पूरा नहीं करना पड़ेगा। इसका कोई महत्व नहीं होगा कि उसने क्या वचन दिया था, उसका पति उस वचन को भंग कर सकता है। यदि उसका पति वचन को भंग करता है, तो यहोवा उसे क्षमा करेगा।
एक विवाहित स्त्री यहोवा को कुछ चढ़ाने का वचन दे सकती है या स्वयं को किसी चीज़ से वंचित रखने का वचन दे सकती है या वह परमेश्वर को कोई विशेष वचन दे सकती है। उसका पति उन वचनों में से किसी को रोक सकता है या पति उन वचनों में से किसी को पूरा करने दे सकता है।
पति अपना पत्नी को कैसे अपने वचन पूरा करने देगा यदि वह दिये वचन के बारे में सुनता है और उन्हें रोकता नहीं है तो स्त्री को अपने दिए वचन के अनुसार कार्य को पूरा करना चाहिए।
ये आदेश है जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया। ये आदेश एक व्यक्ति और उसकी पत्नी के बारे में है तथा पिता और उसकी उस पुत्री के बारे में है जो युवती हो और अपने पिता के घर में रह रही हो।