देखो। यह दुःख जिसे परमेश्वर ने दिया है, उसने तुममें कितना उत्साह जगा दिया है, अपने भोलेपन की कितनी प्रतिरक्षा, कितना आक्रोश, कितनी आकुलता, हमसे मिलने की कितनी बेचैनी, कितना साहस, पापी के प्रति न्याय चुकाने की कैसी भावना पैदा कर दी है। तुमने हर बात में यह दिखा दिया है कि इस बारे में तुम कितने निर्दोष थे।
فَإِنَّهُ هُوَذَا حُزْنُكُمْ هذَا عَيْنُهُ بِحَسَبِ مَشِيئَةِ اللهِ، كَمْ أَنْشَأَ فِيكُمْ: مِنَ الاجْتِهَادِ، بَلْ مِنَ الاحْتِجَاجِ، بَلْ مِنَ الْغَيْظِ، بَلْ مِنَ الْخَوْفِ، بَلْ مِنَ الشَّوْقِ، بَلْ مِنَ الْغَيْرَةِ، بَلْ مِنَ الانْتِقَامِ. فِي كُلِّ شَيْءٍ أَظْهَرْتُمْ أَنْفُسَكُمْ أَنَّكُمْ أَبْرِيَاءُ فِي هذَا الأَمْرِ.