وَيُدْفَعُ اللِّبَاسُ وَالْفَرَسُ لِرَجُل مِنْ رُؤَسَاءِ الْمَلِكِ الأَشْرَافِ، وَيُلْبِسُونَ الرَّجُلَ الَّذِي سُرَّ الْمَلِكُ بِأَنْ يُكْرِمَهُ وَيُرَكِّبُونَهُ عَلَى الْفَرَسِ فِي سَاحَةِ الْمَدِينَةِ، وَيُنَادُونَ قُدَّامَهُ: هكَذَا يُصْنَعُ لِلرَّجُلِ الَّذِي يُسَرُّ الْمَلِكُ بِأَنْ يُكْرِمَهُ».
इसके बाद राजा के किसी अत्यन्त महत्वपूर्ण मुखिया को उस वस्त्र और घोड़े का अधिकारी नियुक्त किया जाये। फिर वह अधिकारी उस व्यक्ति को, जिसे राजा सम्मानित करना चाहता है, उस वस्त्र को पहनाये और फिर इसके बाद वह अधिकारी उस घोड़े के आगे—आगे चलता हुआ उसे नगर की गलियों के बीच से गुजारे। वह अपनी अगुवाई में घोड़े को ले जाते हुए यह घोषणा करता जाये, ‘यह उस व्यक्ति के लिये किया गया है, राजा जिसे आदर देना चाहता है।’”