«إِذَا عَسِرَ عَلَيْكَ أَمْرٌ فِي الْقَضَاءِ بَيْنَ دَمٍ وَدَمٍ، أَوْ بَيْنَ دَعْوَى وَدَعْوَى، أَوْ بَيْنَ ضَرْبَةٍ وَضَرْبَةٍ مِنْ أُمُورِ الْخُصُومَاتِ فِي أَبْوَابِكَ، فَقُمْ وَاصْعَدْ إِلَى الْمَكَانِ الَّذِي يَخْتَارُهُ الرَّبُّ إِلهُكَ،
“कभी ऐसी समस्या आ सकती है जो तुम्हारे न्यायालयों के लिए निर्णय देने में इतनी कठिन हो कि वे निर्णय ही न दे सकें। यह हत्या का मुकदमा या दो लोगों के बीच का विवाद हो सकता है अथवा यह झगड़ा हो सकता है जिसमें किसी को चोट आई हो। जब इन मुकदमों पर तुम्हारे नगरों में बहस होती है तो तुम्हारे न्यायाधीश सम्भव है, निर्णय न कर सकें कि ठीक क्या है? तब तुम्हें उस विशेष स्थान पर जाना चाहिए जो यहोवा तुम्हारे परमेश्वर द्वारा चुना गया हो।