परमेश्वर ने सुलैमान से कहा, “तुम्हारी भावनायें बिल्कुल ठीक हैं। तुमने धन या सम्पत्ति या सम्मान नहीं माँगा है। तुमने यह भी नहीं माँगा है कि तुम्हारे शत्रु मर जायें। तुमने लम्बी उम्र भी नहीं माँगी है। किन्तु तुमने अपने लिये बुद्धि और ज्ञान माँगा है। जिससे तुम मेरी प्रजा के सम्बन्ध में बुद्धिमता से निर्णय ले सको, जिसका मैंने तुमको राजा बनाया है।
فَقَالَ اللهُ لِسُلَيْمَانَ: «مِنْ أَجْلِ أَنَّ هذَا كَانَ فِي قَلْبِكَ، وَلَمْ تَسْأَلْ غِنًى وَلاَ أَمْوَالاً وَلاَ كَرَامَةً وَلاَ أَنْفُسَ مُبْغِضِيكَ، وَلاَ سَأَلْتَ أَيَّامًا كَثِيرَةً، بَلْ إِنَّمَا سَأَلْتَ لِنَفْسِكَ حِكْمَةً وَمَعْرِفَةً تَحْكُمُ بِهِمَا عَلَى شَعْبِي الَّذِي مَلَّكْتُكَ عَلَيْهِ،