Διοτι ημεθα ποτε και ημεις ανοητοι, απειθεις, πλανωμενοι, δουλευοντες εις διαφορους επιθυμιας και ηδονας, ζωντες εν κακια και φθονω, μισητοι και μισουντες αλληλους.
यह मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि एक समय था, जब हम भी मूर्ख थे। आज्ञा का उल्लंघन करते थे। भ्रम में पड़े थे। तथा वासनाओं एवं हर प्रकार के सुख-भोग के दास बने थे। हम दुष्टता और ईर्ष्या में अपना जीवन जीते थे। हम से लोग घृणा करते थे तथा हम भी परस्पर एक दूसरे को घृणा करते थे।