“Kaç kez kötülerin kandili söndü,
Başlarına felaket geldi,
Tanrı öfkelendiğinde paylarına düşen kederi verdi?
किन्तु क्या प्राय: ऐसा होता है कि दुष्ट जन का प्रकाश बुझ जाया करता है?
कितनी बार दुष्टों को दु:ख घेरा करते हैं?
क्या परमेश्वर उनसे कुपित हुआ करता है, और उन्हें दण्ड देता है?