यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर को प्रसन्न करता है तो परमेश्वर उसे बुद्धि, ज्ञान और आनन्द प्रदान करता है। किन्तु वह व्यक्ति जो उसे अप्रसन्न करता है, वह तो बस वस्तुओं के संचय और उन्हें ढोने का ही काम करता रहेगा। परमेश्वर बुरे व्यक्तियों से लेकर अच्छे व्यक्तियों को देता रहता है। इस प्रकार यह समग्र कर्म व्यर्थ है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।
[] Çünkü Tanrı bilgiyi, bilgeliği, sevinci hoşnut kaldığı insana verir. Günahkâra ise, yığma, biriktirme zahmeti verir; biriktirdiklerini Tanrı’nın hoşnut kaldığı insanlara bıraksın diye. Bu da boş ve rüzgarı kovalamaya kalkışmakmış.