मेरी प्रिये, तुम अति सुन्दर हो!
तुम सुन्दर हो!
घूँघट की ओट में
तेरी आँखें कपोत की आँखों जैसी सरल हैं।
तेरे केश लम्बे और लहराते हुए हैं
जैसे बकरी के बच्चे गिलाद के पहाड़ के ऊपर से नाचते उतरते हों।
तेरी गर्दन लम्बी और पतली है
जो खास सजावट के लिये
दाऊद की मीनार जैसी की गई।
उसकी दीवारों पर हज़ारों छोटी छोटी ढाल लटकती हैं।
हर एक ढाल किसी वीर योद्धा की है।
जागो, हे उत्तर की हवा!
आ, तू दक्षिण पवन!
मेरे उपवन पर बह।
जिससे इस की मीठी, गन्ध चारों ओर फैल जाये।
मेरा प्रिय मेरे उपवन में प्रवेश करे
और वह इसका मधुर फल खाये।