मैं यह इसलिए कह रहा हूँ, “व्यभिचार मत कर, हत्या मत कर, चोरी मत कर, लालच मत रख।” [] और जो भी दूसरी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं, इस वचन में समा जाती हैं, “तुझे अपने साथी को ऐसे ही प्यार करना चाहिए, जैसे तू अपने आप को करता है।” []
لأَنَّ «لاَ تَزْنِ، لاَ تَقْتُلْ، لاَ تَسْرِقْ، لاَ تَشْهَدْ بِالزُّورِ، لاَ تَشْتَهِ»، وَإِنْ كَانَتْ وَصِيَّةً أُخْرَى، هِيَ مَجْمُوعَةٌ فِي هذِهِ الْكَلِمَةِ:«أَنْ تُحِبَّ قَرِيبَكَ كَنَفْسِكَ».