तुम भ्रम में पड़े हो। तुम सोचा करते हो, कि मिट्टी कुम्हार के बराबर है। तुम सोचा करते हो कि कृति अपने कर्ता से कह सकती है “तूने मेरी रचना नहीं की है!” यह वैसा ही है, जैसे घड़े का अपने बनाने वाले कुम्हार से यह कहना, “तू समझता नहीं है तू क्या कर रहा है।”
يَا لَتَحْرِيفِكُمْ! هَلْ يُحْسَبُ الْجَابِلُ كَالطِّينِ، حَتَّى يَقُولُ الْمَصْنُوعُ عَنْ صَانِعِهِ: «لَمْ يَصْنَعْنِي». أَوْ تَقُولُ الْجُبْلَةُ عَنْ جَابِلِهَا: «لَمْ يَفْهَمْ»؟