«ای افرایم، چگونه تو را ترک کنم
و ای اسرائیل چطور بگذارم که بروی؟
نمیتوانم با تو مانند ادمه و صبوئیم رفتار کنم.
دلم در قفسهٔ سینهام از غصّه میتپد
و از شدّت ترحّم به رقّت میآید.
“हे एप्रैम, मैं तुझको त्याग देना नहीं चाहता हूँ।
हे इस्राएल, मैं चाहता हूँ कि मैं तेरी रक्षा करूँ।
मैं तुझको अदना सा कर देना नहीं चाहता हूँ!
मैं नही चाहता हूँ कि तुझको सबोयीम सा बना दूँ!
मैं अपना मन बदल रहा हूँ
तेरे लिये प्रेम बहुत ही तीव्र है।